कोटेश्वर महादेव धाम बन सकता है धार्मिक पर्यटन केंद्र

धार.
लेबड़-नयागांव फोरलेन पर कानवन से 12 किमी दूर विध्याचंल की सुरम्य पहाड़ियों में स्थित अति प्राचीन कोटेश्वर महादेव धाम है। जो क्षेत्र ही नहीं वरन आसपास के हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। आस्था के साथ-साथ यह स्थल पर्यटन का भी एक प्रमुख केंद्र है, जहां हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। इसकी प्राचीनता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथ श्रीमद् भागवत महापुराण के दशम स्कंध के अलावा चार वेदों में से दो वेद युर्जवेद व सामवेद में इसका उल्लेख मिलता है। यही नहीं भगवान श्रीकृष्ण के चरण रज इस तीर्थ स्थल को और पवित्र कर दिया है। तो संत सुकाल भारती की तपोभूमि भी रही है। वर्षाकाल में हरियाली की चादर बिछने पर यह सबका मन मोह लेता है। यह सब होने के बावजूद यह अतिप्राचीन तीर्थ वर्षो से पर्यटन के रूप में विकसित होने की बांट जोह रहा है।

भगवान श्रीकृष्ण के चरणों की पावन रजभूमि एवं सिद्ध संत सुकाल भारती की तपोस्थली के रूप में कोटेश्वर धाम विश्व विख्यात है। किवंदति है कि भगवान श्रीकृष्ण जब रुक्मणी का हरण कर कुंदनपुर (अमझेरा) जा रहे थे। तब उन्होंने यहां विश्राम किया था और ओमकार स्वरूप शिवलिंग की स्थापना कर पूजन किया था। कोटेश्वर तीर्थ के संस्थापक संत सुकाल भारती ने यहां तप किया और विक्रम संवत 551 में यहां समाधि ली थी। यह तीर्थ सिद्ध तपस्वियों की तपस्या का प्रतिफल के रूप में प्रकट हुआ है। जिसके प्रमाण स्वरूप यहां 11 सिद्धाें की समाधि विद्यमान है।

1980 से पुरातत्व के अधीन
पाकिस्तान के सिंध प्रांत की तरह यहां भी हिंगलाज माता का मंदिर है, उन्हीं का स्वरूप मानकर इनकी पूूजा अर्चना की जाती है। इस स्थल पर धर्मेंद्र भारती की स्मृति में धर्मस्व मंदिर जो 14 वीं शती में भूमिज शैली में निर्मित है। इसको वर्ष 1980 से पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन लेकर संरक्षित स्थल घोषित किया है। यहां करीब 1530 वर्षो से कार्तिक मास की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष पांच दिवसीय मेला लगता है।

स्वयंभू शिवपंचायतन सिर्फ कोटेश्वर में
प्राकृतिक रूप से स्वयंभू शिव पंचायतन सिर्फ कोटेश्वर महादेव धाम में ही है। यहां गुफा में  विष्णु, सूर्य, देवी, गणपति विराजमान है और मध्य में कोटेश्वर महादेव स्थापित है। जिन्हें शिव पंचायतन कहा जाता है। विद्धान पंडितों के मुताबिक इस प्रकार से शिव पंचायतन अन्य कहीं शिवालयों में देखने को नहीं मिलती है। श्रावण मास में पांचों प्रहर पूजना अर्चना मठाधीशों द्वारा की जाती है।

पर्यटन की है अपार संभावनाएं
विश्व विख्यात पंडित प्रदीप मिश्रा यहां साल 2023 में पंच पुष्प शिवमहापुराण कथा का आयोजन हुआ था। इसके बाद इस तीर्थ की ख्याति चहुंओर ओर फैल गई। तीर्थ के साथ ही आसपास सामाजिक वानिकी की वनरोपणी की 50 हेक्टेयर भूमि है। हिंगलाज माता मंदिर से एक नीचे नाला बहता है। जिस पर बांध बनाकर पानी रोकने से वहां नौकायन, तैराकी भी प्रारंभ की जा सकती है। इसके लिए प्रयास भी हुए लेकिन बाद में इस पर आगे काम नहीं हो पाया। वैसे भी यहां विध्यांचल की पहाड़ियों की पवित्र गुफा में स्थित शिवलिंग पर गंगा की जलधाराएं प्राकृतिक रूप से अभिषेक करती है। कार्तिक पूर्णिमा पर कुंड दीपों की रोशनी से झिलमिला उठता है। महिलाएं अपने मनोरथ की पूर्ति के लिए आटे के बनाए दीप जल में प्रवाहित करती है। श्रावण के पूरे मास में श्रद्धालुओं एवं कावड़ियों का यहां तातां लगा रहता है।

22 वर्षो से अविरल अखंड कीर्तन
कोटेश्वर तीर्थ में 19 मई 2002 से सतत 24 घंटे हरे राम हरे कृष्ण का अखंड कीर्तन चल रहा है। इसमें आसपास के 31 गांवों के श्रद्धालु बारी-बारी से आकर  कीर्तन करते है। रात्रि के प्रहर मे रामधुन की आवाज दूर दूर तक सुनाई देती है।

महाकांल लोक के बाद महिमा बढ़ी
महाकांल लोक बनने के बाद गुजरात से आने उज्जैन जाने वाले कई यात्री इस तीर्थ की महिमा से प्रभावित होकर यहां दर्शन पूजन के लिए आते है। इसके अलावा श्रीमद् भागवत कथा, महारूद्र यज्ञ आदि आयोजन भी अनेक बार हो चुके है। इससे हजारों की संख्या में दूर दराज स्थानों से यहां श्रद्धालु आते है। यदि यह तीर्थ पर्यटन के रूप में विकसित हो जाता है तो न सिर्फ कोटेश्वर महादेव की महिमा बढ़ेगी वरन श्रद्धालुओं के आने जाने से रोजगार भी उत्पन्न होंगे। इससे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में भी सुधार होंगा।

Source : Agency

13 + 15 =

Ahtieshyam Uddin (Editor in Chief)

Email: nationalsamacharindia2019@gmail.com

Mobile:    (+91) 8770103914

(Office Chhattisgarh)

Chhatisgarh Bureau Office: Vaishali Residency, Shop No.01, Ward No. 44, Shankar Nagar, Bilaspur (CG) Pin: 495004