कल चैत्र पूर्णिमा: जाने पूजविधि, मंत्र, मुहूर्त, महत्व

नई दिल्ली
चैत्र पूर्णिमा का दिन मां लक्ष्मी को समर्पित है। इस दिन विष्णु भगवान, माँ लक्ष्मी और चंद्र देव की पूजा करने का विधान है। हर महीने में एक बार पूर्णिमा की तिथि पड़ती है। मान्यता है चैत्र पूर्णिमा पर पूरी श्रद्धा भाव के साथ भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना करने से सुख-समृद्धि बढ़ती है। आइए जानते हैं चैत्र पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त, पूजा की विधि, मंत्र, आरती, महत्व और चंद्र दर्शन टाइम-
 

चैत्र पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
चैत्र महीने की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 23 अप्रैल को सुबह 03:25 मिनट से होगी और इसके अगले दिन यानी 24 अप्रैल को सुबह 05:18 मिनट पर तिथि का समापन होगा। उदया तिथि अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, चैत्र पूर्णिमा 23 अप्रैल को मनायी जाएगी।

पूजा का शुभ मुहूर्त-11:53 ए एम से 12:46 पी एम
चन्द्रोदय- 06:25 पी एम, 23 अप्रैल

चैत्र पूर्णिमा पूजा-विधि
पवित्र नदी में स्नान करें या पानी में गंगाजल मिलकर स्नान करें
भगवान श्री हरि विष्णु और माँ लक्ष्मी का जलाभिषेक करें
माता का पंचामृत सहित गंगाजल से अभिषेक करें
अब माँ लक्ष्मी को लाल चंदन, लाल रंग के फूल और श्रृंगार का सामान अर्पित करें
मंदिर में घी का दीपक प्रज्वलित करें
संभव हो तो व्रत रखें और व्रत लेने का संकल्प करें
चैत्र पूर्णिमा की व्रत कथा का पाठ करें
श्री लक्ष्मी सूक्तम का पाठ करें
पूरी श्रद्धा के साथ भगवान श्री हरि विष्णु और लक्ष्मी जी की आरती करें
माता को खीर का भोग लगाएं
चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य दें
अंत में क्षमा प्रार्थना करें

मंत्र- ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नमः

गंगा स्नान का महत्व
चैत्र पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान स्नान और दान करने का खास महत्व है। मान्यता है कि इस अवसर पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं। इसी कारण चैत्र पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से साधक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। साथ ही चैत्र पूर्णिमा के दिन चंद्र देव और धन की देवी मां लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा और व्रत करने का विधान है। इसलिए चैत्र पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान किया जाता है।

लक्ष्मी माता की आरती
ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥

 

Source : Agency

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