जब भगवान शिव को निगल गईं मां पार्वती, तब कहलाई धूमावती

ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष अष्टमी को मां धूमावती की जयंती मनाई जाती है। भगवान शिव द्वारा प्रकट की गई दस महाविद्याओं में मां धूमावती एक हैं। इस अवसर पर दस महाविद्या का पूजन किया जाता है। मां पार्वती का यह स्वरूप अत्यंत उग्र है। मां धूमावती विधवा स्वरूप में पूजी जाती हैं। मां धूमावती के दर्शन से संतान और पति की रक्षा होती है। मां अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करती हैं। परंपरा है कि इस दिन सुहागिनें, मां का पूजन नहीं करती हैं, बल्कि दूर से ही मां के दर्शन करती हैं। 

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार मां धूमावती अपनी क्षुधा शांत करने के लिए भगवान शिव के पास जाती हैं, किंतु उस समय भगवान समाधि में लीन होते हैं। मां के बार-बार निवेदन के बाद भी भगवान शिव अपने ध्यान से नहीं उठते। इस पर देवी श्वांस खींचकर भगवान शिव को निगल जाती हैं। भगवान शिव के कंठ में विष होने के कारण मां के शरीर से धुआं निकलने लगा और उनका स्वरूप विकृत और शृंगार विहीन हो जाता है। इस कारण उनका नाम धूमावती पड़ा। मां धूमावती की कृपा से सभी पापों का नाश होता है। कौए पर सवार मां धूमावती श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और इनके केश हमेशा खुले रहते हैं। इन्हें मां पार्वती का उग्र रूप कहा जाता है। मां की गुप्त नव​रात्रि में विशेष रूप से पूजा होती है। इस दिन मां धूमावती की कथा अवश्य सुननी चाहिए। मां की उपासना से शत्रुओं से छुटकारा पाया जा सकता है। इस दिन काले तिल को काले वस्त्र में बांधकर मां धूमावती को अर्पित करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मां की कृपा से विपत्तियों और रोग से मुक्ति प्राप्त होती है। मां की कृपा से जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहती है। 

Source : Agency

12 + 15 =

Ahtieshyam Uddin (Editor in Chief)

Email: nationalsamacharindia2019@gmail.com

Mobile:    (+91) 8770103914

(Office Chhattisgarh)

Chhatisgarh Bureau Office: Vaishali Residency, Shop No.01, Ward No. 44, Shankar Nagar, Bilaspur (CG) Pin: 495004